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मुख्यमंत्री श्री चौहान ने शहीद दिवस पर अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को किया नमन

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले अमर क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को शहीद दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने निवास कार्यालय स्थित सभागार में शहीदों के चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित की। खजुराहो सांसद तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री वी.डी. शर्मा और संगठन महामंत्री श्री हितानंद शर्मा ने भी शहीदों के चित्र पर माल्यार्पण किया।अमर शहीद सरदार भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। भगत सिंह एक अध्ययनशील विचारक, अच्छे वक्ता और लेखक भी थे। छोटी उम्र में भगत सिंह असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। लाहौर षडयंत्र मामले में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज पुलिस उप अधीक्षक जे. पी. सांडर्स को मौत के घाट उतारने में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। सरदार भगत सिंह ने दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे। भगत सिंह को 23 मार्च 1931 की शाम 7 बजे सुखदेव और राजगुरु के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।अमर शहीद सुखदेव स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी थे। उन्होंने लाहौर में नौजवान भारत सभा आरंभ की। सुखदेव को भी लाहौर षड़यंत्र के अंतर्गत अंग्रेज पुलिस उप अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को मौत के घाट उतारने के लिए राजगुरु और भगत सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गई। वे भी लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को सांय काल 7 बजे राजगुरु और भगत सिंह के साथ हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूल गए।श्री शिवराम हरी राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे जिले के खेड़ा गाँव में हुआ था। वाराणसी में विद्या अध्ययन करते हुए राजगुरू का संपर्क अनेक क्रांतिकारियों से हुआ। चंद्रशेखर आजाद से वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए। राजगुरू एक अच्छे निशानेबाज भी थे। सांडर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया। श्री राजगुरू ने 23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा श्री सुखदेव के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को भारत के अमर शहीदों की सूची में प्रमुखता से दर्ज करा दिया।

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