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कृषि

राज्यपाल श्री पटेल ने किसानों से प्राकृतिक खेती के लिए संकल्पित होने का आहवान किया

रासायनिक खाद और कीटनाशक पर आधारित कृषि की दशा और दिशा बदलने के उद्देश्य से प्राकृतिक खेती और प्राकृतिक चिकित्सा के प्रकाण्ड विद्वान गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक कृषि पद्धति पर अपने विचार रखे। कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर भोपाल में हुई कार्यशाला में मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री श्री चौहान ने भी सहभागिता की। केंद्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कार्यशाला में दिल्ली से वर्चुअली सहभागिता की। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री तथा भोपाल के प्रभारी श्री भूपेंद्र सिंह, किसान-कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्र-गान तथा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती : राज्यपाल श्री पटेलराज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने प्रदेश के किसानों का आहवान किया कि “जब जागो-तभी सवेरा” के भाव से प्राकृतिक खेती के लिए संकल्पित हो। उन्होंने कहा कि वर्ष 1977 में राष्ट्रसंघ ने ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में चेताया था। इसके बावजूद ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रकृति ने वर्ष में चार मौसम की व्यवस्था की है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हुए मानव जाति ने एक दिन में चार मौसम कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि आज एक ही दिन में तेज ठंड और गर्मी दोनों हो रही है। समय रहते यदि प्रयास नहीं किए गए तो भविष्य भयावह हो सकता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी समाधान प्राकृतिक खेती है। आवश्यकता है कि यह बात हर किसान तक पहुँचाई जाए।प्राकृतिक खेती अपनाने पर भावी पीढ़ी मानेगी वर्तमान पीढ़ी का आभारगुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती के एक काम से अनेक लाभ मिलेंगे। ग्लोबल वार्मिंग से रक्षा होगी। पर्यावरण, पानी, गाय, धरती और लोगों का स्वास्थ्य बचेगा। इससे सरकार और लोगों का धन भी बचेगा तथा भावी पीढ़ी वर्तमान पीढ़ी का आभार मानेगी। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती और जैविक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती, धरती- पर्यावरण और जीवन जगत के लिए अधिक सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती है। केवल एक से दो प्रतिशत तापमान में वृद्धि से 32 प्रतिशत उत्पादन कम होगा। अत: प्राकृतिक खेती को अपनाना आवश्यक है।प्राकृतिक खेती है शून्य लागत की खेतीराज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती शून्य लागत वाली खेती है, जिसकी खाद की फैक्ट्री देशी गाय और दिन-रात काम करने वाला मित्र केंचुआ है। उन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच अंतर बताया। साथ ही प्राकृतिक खेती की विधि को विज्ञान आधारित उदाहरणों और स्वयं के खेती के अनुभवों के आधार पर समझाया। उन्होंने बताया कि रासायनिक तत्वों का खेत में उपयोग, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को समाप्त कर देता है। जैविक खेती की उत्पादकता धीमी गति से बढ़ती है। साथ ही आवश्यक खाद के लिए गोबर की बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए प्रति एकड़ बहुत अधिक पशुओं की जरूरत और अधिक श्रम लगता है।

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