मप्र हाई कोर्ट ने सिविल जज प्रवेश परीक्षा के अभ्यर्थियों को बड़ी राहत दी है। अब वे अभ्यर्थी भी प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन कर सकेंगे, जिन्होंने तीन वर्षों में अपने नाम से हर वर्ष कम से कम छह महत्वपूर्ण आदेश न्यायालय से नहीं कराए हैं। हाई कोर्ट ने सिविल जज प्रवेश परीक्षा के नियमों को चुनौती देते हुए दायर याचिका की सुनवाई करते हुए यह अंतरिम राहत दी है।
हालांकि कोर्ट ने कहा है कि चयन प्रक्रिया में अभ्यर्थियों के इन महत्वपूर्ण आदेशों का आकलन जरूर किया जाएगा। प्रवेश परीक्षा की अन्य शर्तों के संबंध में कोर्ट ने संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। नईदुनिया ने सिविल जज प्रवेश परीक्षा के इस नियम को लेकर अभ्यर्थियों को आ रही दिक्कतों को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।
गौरतलब है कि मप्र हाई कोर्ट ने व्यवहार न्यायाधीश वर्ग दो के 138 पदों के लिए 17 नवंबर को विज्ञापन जारी किया था। इसमें अभ्यर्थी के लिए एलएलबी की डिग्री की न्यूनतम अर्हता के साथ-साथ इसमें दो अन्य अर्हताओं में से किसी एक को पूरा करना अनिवार्य किया गया था। इन अर्हताओं में से पहली यह थी कि अभ्यर्थी ने एलएलबी की सभी परीक्षाएं पहले प्रयास में उत्तीर्ण की हों और उसे इन सभी परीक्षाओं में न्यूनतम 70 प्रतिशत अंक मिले हों।
दूसरी अर्हता यह थी कि अभ्यर्थी ने तीन वर्षों में प्रत्येक वर्ष कम से कम छह महत्वपूर्ण आदेश न्यायालय से जारी करवाए हों। अभ्यर्थी इन अर्हताओं को लेकर विरोध कर रहे हैं। इन अर्हताओं को चुनौती देते हुए रजनीश यादव और अन्य ने एडवोकेट सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता तथा कपिल दुग्गल के माध्यम से हाई कोर्ट में चुनौती दी है। मुख्य न्यायाधिपति रवि मलिमथ और न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगल पीठ ने इस याचिका की सुनवाई की।
कोर्ट ने दी अंतरिम राहत
याचिका में कहा है कि तीन वर्ष की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आल इंडिया जजेस एसोसिएशन के निर्णय में दिए गए मानदंडों के विपरीत है। एक आधार यह भी लिया गया कि विधि स्नातक डिग्री में 70 प्रतिशत अंकों की पात्रता, वह भी प्रथम प्रयास में एक ऐसी शर्त है जो असंवैधानिक है। अलग-अलग विश्वविद्यालय अलग-अलग परीक्षाएं आयोजित करते हैं।
सामान्यत: शासकीय विधि महाविद्यालय विद्यार्थियों को कम अंक देते हैं जबकि निजी विश्वविद्यालय छात्र को परीक्षा के लिए पात्र बनाने के लिए अधिक अंक दे देते हैं। दोनों को समान नहीं माना जा सकता। एडवोकेट गुप्ता ने बताया कि न्यायालय ने सुनवाई के दौरान अन्य शर्तों में हस्तक्षेप करने से तो इंकार कर दिया लेकिन अभ्यर्थियों को अंतरिम राहत देते हुए आदेशित किया कि पिछले तीन वर्ष में प्रत्येक वर्ष के छह महत्वपूर्ण आदेश की प्रति प्रस्तुत नहीं करने पर किसी अभ्यर्थी का आवेदन निरस्त नहीं किया जाए। याचिका में चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी।