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मध्यप्रदेश

प्रदेश में लागू नहीं की गई पांचवीं व छठवीं अनुसूची

भोपाल । मध्य प्रदेश में पांचवीं व छठवीं अनुसूची लागू किए जाने की मांग करने वाली जनहित याचिका का हाईकोर्ट ने पटाक्षेप कर दिया। चीफ जस्टिस रवि विजय मलिमठ व जस्टिस पुरुषेन्द्र कौरव की युगलपीठ ने आवेदक को उक्त संबंध में मप्र शासन के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने के निर्देश दिए हैं। याचिका वापस लेने के आग्रह को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने याचिका निराकृत कर दी।गढ़ा गौंडवाना संरक्षक संघ के अध्यक्ष किशोरीलाल भलावी, नेम सिंह मरकाम सहित अन्य की ओर से याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि पांचवीं व छठवीं अनुसूची लागू करने के प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 (1) में दिए गए हैं। जिसमें अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में स्वशासन आदिवासी व्यक्तियों को दिए जाने के प्रावधान दिए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद आज तक मप्र शासन ने उक्त प्रावधान लागू नहीं किए। इतना ही नहीं 1994 में मप्र शासन द्धारा भूरिया कमेटी का गठन किया गया था। जिसमें आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में ग्राम पंचायत एवं जिला परिषद व अन्य संवैधानिक पदों पर आदिवासियों को ही स्वशासन प्रदान करने के लिए रिपोर्ट सौंपी गई थी, जिसे मप्र शासन ने केन्द्र सरकार को भेजा था, लेकिन इसके बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिस कारण आदिवासियों को पर्याप्त अधिकार प्राप्त नही हो पा रहे है।

जिस पर उनकी संस्कृति, परंपरानुसार विधि के अनुरूप समुचित स्वास्थ्य शिक्षा व अन्य मूलभूत अधिकार के लिए राज्य में पांचवीं व छठवीं अनुसूची लागू किए जाने की मांग करते हुए उक्त याचिका दायर की गई थी। सुनवाई पश्चात् न्यायालय ने मामले का पटाक्षेप करते हुए कहा है कि याचिकाकर्ता सरकार के समक्ष अभ्यादेन दें, जिसके बाद ही न्यायालय मामले में हस्तक्षेप करेगा। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता बालकिशन चौधरी पैरवी कर रहे थे।

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