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प्रदेश की ग्रामीण विकास योजनाओं से बदल रहा है ग्रामीण परिवेश

भोपाल : प्रदेश में गाँवों की स्थिति अब तेजी से सुधर रही है। ग्रामीण इलाकों में विकास के नए सोपान गढ़े जा रहे हैं। प्रदेश को कई योजनाओं में देश में प्रथम स्‍थान मिलने से इसकी पुष्टि होती है। ग्राम सभाओं में भागीदारी, पंचायतों के सशक्‍तीकरण, सामूहिक विकास में समुदाय का समावेशन, सामुदायिक निगरानी, सहभागिता, सामुदायिक स्‍वामित्‍व जैसे मुद्दों के साथ ग्रामीण अधोसंरचना विकास, मूलभूत सुविधाएँ, आवागमन, सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण, आत्‍म-निर्भरता, रोजगार-स्‍व-रोजगार, नवीन तकनीकियों की ग्राम स्तर तक पहुँच, विशेषकर शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, स्‍वच्‍छता और आ‍जीविका क्षेत्र में प्रतिबद्धता से काम किये जा रहे हैं। इन तमाम प्रयासों से गाँवों की तस्‍वीर बदलती दिख रही है।ग्रामीण महिलाएँ नवाचार से हो रही आत्म-निर्भरस्‍व-सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएँ अब रसोई घर के डब्‍बों की जगह बचत का पैसा बैंक खाते में जमा करती हैं। लगभग साढ़े 9 लाख समूह सदस्‍य महिलाओं के पृथक् बचत खाते खुले हुए हैं। सवा 28 लाख से ज्यादा समूह सदस्‍यों ने बीमा भी करवाया है। महिलाओं ने कई नवाचार करते हुए ऐसे काम भी करना शुरू कर दिये हैं।श्‍योपुर जिले के कराहल ब्‍लॉक के ग्राम डूंडीखेडा की सुनीता आदिवासी आजीविका एक्‍सप्रेस सवारी वाहन का संचालन करती हैं। श्‍योपुर में स्‍व-सहायता समूह ने हाल ही में ऑक्‍सीजन प्‍लांट का संचालन भी शुरू किया है। समूहों द्वारा आत्‍म-निर्भर गौ-शालाओं का संचालन, फ्लाई एश से ब्रिक्‍स निर्माण, वनोपज संग्रहण एवं भण्‍डारण, सड़क संधारण, नल-जल योजनाओं का संचालन, विद्युत बिल वितरण एवं संग्रहण, ग्राम सभाओं में भागीदारी कर सामुदायिक विकास के मुद्दों पर चर्चा, निर्णय और निगरानी में भी सक्रिय भूमिका निभाने के ऐसे कार्य हैं, जिनको देखकर आश्चर्य किया जा सकता है। एक समय वह था, जब महिलाएँ घरों की चहारदीवारी में चूल्‍हे-चौके के सीमित दायरे में जीवन गुजारा करती थीं, पर अब ग्रामीण महिलाएँ किसी पर बोझ नहीं बल्कि आत्‍म-निर्भर, सशक्‍त नेतृत्‍व की पहचान बनती जा रही हैं। इनके पास आजीविका के बेहतर अवसर हैं। इसीलिये वे आत्‍म-निर्भर के साथ सम्मानित भी हैं।ग्रामीण क्षेत्र में उन्‍नत कृषि, पशुपालन में बुनियादी सुविधाएँ, सिंचाई, भण्‍डारण, वृहद् बाजारों को गाँव से जोड़ने के लिये भी उल्‍लेखनीय जतन किये गये हैं। वैज्ञानिक ढंग से विकास की प्रक्रिया का अनुसरण किये जाने से परंपरागत आय के संसाधनों पर निर्भरता कम होने के फलस्वरूप सकारात्‍मक परिवर्तन आना शुरू हुए हैं। सूक्ष्‍म उद्यमशीलता को बढ़ावा, फलदार वृक्षारोपण, व्‍यावसायिक सब्‍जी एवं दुग्‍ध उत्‍पादन में बढ़त होने से कृषकों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। इससे गाँवों की समृद्धि के द्वार खुलते जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में हो रहे सामाजिक व्‍यवहार परिवर्तन, विकास के प्रति सामाजिक लामबंदी, विभाग की प्रतिबद्धता, ग्रामीणों में विकास की ललक एवं जज्‍बे को देखकर कहा जा सकता है कि ग्रामीण परिवेश तेजी से बदल रहा है।रोजगार गारंटी योजना ने दिया श्रमिकों को संबलमहात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजनामें पिछले वित्त वर्ष में तकरीबन 34 करोड़ मानव दिवस का सृजन हुआ। यह उपलब्धि अब तक की सर्वाधिक है। यह प्रदेश विगत वर्ष लगभग एक करोड़ 6 लाख मजदूरों को रोजगार देकर देश में अग्रणी रहा है। इस वित्त वर्ष में 12 लाख 94 हजार कार्य शुरू किये गये हैं। इनमें मुख्‍य रूप से पौधा-रोपण, स्‍कूल डायनिंग टेबल, कैच द रैन जैसे कार्य शामिल हैं।प्रथम तिमाही में मानव दिवसों का बजट 10 करोड़ 50 लाख निर्धारित था। इनमें अभी तक 65 लाख 58 हजार मजदूरों को रोजगार देकर 14 करोड़ 80 लाख मानव दिवस सृजित किये गये। लगभग 37 लाख 56 हजार जॉब कार्डधारी परिवारों के 66 लाख 21 हजार श्रमिकों ने लगभग 15 करोड़ मानव दिवस सृजित किये हैं। मानव दिवस सृजन में प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। अनुसूचित जन-जाति के परिवारों को रोजगार देने के मामले में प्रदेश देश में पहले स्‍थान पर है। लगभग 12 लाख 71 हजार आदिवासी परिवारों द्वारा करीब 4 करोड़ 86 लाख मानव दिवस सृजित किये जाकर लगभग 2 हजार 790 करोड़ रूपये की मजदूरी का भुगतान किया जा चुका है। इस वर्ष में अब तक एक लाख 23 हजार कार्य पूरे किये जाने के बाद 12 लाख के करीब कार्य प्रगति पर हैं।कोरोना की पहली लहर में पिछले वित्त वर्ष में एक करोड़ 6 लाख मजदूरों को रोजगार देकर यह प्रदेश देश में अग्रणी स्‍थान पर है। कोरोना की दूसरी लहर के चलते ग्राम स्‍तर पर कंटेनमेन्ट जोन निर्मित किए गए। इन जोन के बाहर के मजदूरों को रोजगार दिलाया गया, जिससे श्रमिकों को रोजगार मिल सका। राज्‍य ग्रामीण आजीविका मिशन में पूर्व से गठित स्‍व-सहायता समूहों द्वारा ग्रामीण निर्धन परिवारों को संगठित कर उनके आर्थिक, सामाजिक सशक्‍तीकरण के काम किये जा रहे हैं। समूह सदस्‍यों को समूहों, ग्राम संगठनों, संकुल स्‍तरीय संघों के माध्‍यम से बैंक ऋण के रूप में सस्‍ती ब्‍याज दरों पर आसान प्रक्रिया से वित्‍तीय सहायता दी जा रही है। इससे उन्‍हें बिना कठिनाई के सुदृढ़ करने के अवसर मिलने लगे हैं।मिशन के अंतर्गत सभी जिलों में 44 हजार 800 ग्रामों में यह गतिविधियाँ संचालित हैं। ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे तकरीबन 37 लाख 73 हजार जरूरतमंद निर्धन परिवारों को 3 लाख 31 हजार स्व-सहायता समूहों से जोड़ा गया है। साथ ही 31 हजार ग्राम संगठन और एक हजार संकुल स्‍तरीय संगठन गठित हैं। कृषि एवं पशुपालन आधारित आजीविका गतिविधियों से लगभग 12 लाख 54 हजार परिवारों को जोड़ा गया है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में अधिकांश परिवारों की आजीविका कृषि पर आधारित है इसलिये कम लागत में अधिक उपज के लिये उन्‍नत कृषि पद्धति अपनाने, नवीन तकनीकी का प्रयोग, उन्‍नत बीज प्रयोग, जैविक खाद, जैविक कीटनाशक के उपयोग को बढा़वा दिया जा रहा है। प्रदेश में लगभग 6 हजार सामुदायिक स्‍त्रोत व्‍यक्ति (सीआरपी) के रूप में कृषि सखीं चिन्हित की गई हैं। इनमें से कुछ सीआरपी ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और छत्तीसगढ़ में समूह सदस्‍यों को मार्गदर्शन देकर मानदेय के रूप में अतिरिक्‍त आय अर्जित कराई है। मध्‍यप्रदेश की कृषि सखियों की मांग इन राज्यों में लगातार बनी हुई है।

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